Wednesday, March 13, 2013

उम्मिदे

कुछ धुंद्लीसी शाम
जरा झुकासा आसमान
मन कि पंखुडीयोमे समाई
एक नईसी पेहचान

दिल ख्वाईश जरा पुछो
थोडीसी उदास.......थोडीसी तनहाई देखो
मन आज बावरासा .... काफिरासा
साफ साफ धुंदलासा नजारा

सोच वही नई पुरानीसी
झिंदगी वही नई पुरानीसी
कुछ उम्मिदे नई नईसी
दिल मे समाई ख़ुशी ख़ुशीसी
आज रोता हुआ आसू सेहम सा गया
क्यू ना जाने बेहते बेहते रुक गया ....

शायद....

करवटे ले रही हैं झिंदगी
उदासीयोंकी ढल रही हैं शाम
पेहचान .... उम्मीदोकी
ख़ुशी ... आखरी बेह्ने वाले उस आंसू की
बेह जा ... समा जा..
मुझे खुदको पेह्चानाने दे जरा ..!!

-- सागर


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