Tuesday, May 29, 2018

लेहेर

वोहं समंदर कि लेहेर बस पावं को छूकर निकल गई   
देखता रहा बस उसे गुजरते..... दूर जाते
सेहम सा गया दिल
कुछ बुलबुलो के तुटने से 

कुछ पास आकर बस छूके निकल गया
धसती ऊस रेत में सिसकते सिसकते मीट गया
पाना चाहता था उसे
हासील करणें कि कोशिश में
सरकता गया न जाणे कही

दूर कहि वोहं लेहेर कि आहट
बिना दिखे अनजानी सी
कोशिश पास आणेकी
बस छूके दूर जानेकी
ख़ुशी मेरी इसी तरहा, लेहेर की जैसी
और गम कुछ उस घने सागर सा ...... फैला हुआ
बस एक ख़ुशी की लेहेर के इंतझार में यही   
खोते रहता हू उस रेत को कही


- सागर