Sunday, September 7, 2014

काश तुम समझ पाती में क्या सोचता हु ||


मन को अगर मेरे पढती , समझती जरा
सेहमे उस दिल को संभालती जरा 
खुद्के के खयालोसे बाहर आकर तराशती जरा 
तो तुम समझ पाती के में क्या सोचता हु ||

पानी के बहाव को हाथो में समेटती तुम
दो घुट मुझे भी पिलाती जरा 
बंद आंखोसे दिलमे उतरते पानी को गर सेह्जती तुम 
तो तुम समझ पाती के में क्या सोचता हु ||

अपनी दुनिया में ही गुम हो कही
तलाशती मेरी आंखे तुम्हे दरबदर कही
समझ पाती गर आखोंकी चरमराहट तुम
तो तुम समझ पाती के में क्या सोचता हु ||

तुम्हारी परछाईमें खोई परछाई मेरी 
ख़ुशी से उलझी तुम में किस्मत ये मेरी 
उलझी परछाई कि तरहा, गर दिलोकी किस्मत भी उलझी होती 
तो तुम समझ पाती के में क्या सोचता हु ||

-- सागर 

Thursday, September 4, 2014

ए दिल कही और चल !!


ए दिल कही और चल 
सुना मन, सुनी आंखे लिये
ए मेरे दिल कही और चल !!

पुराने दरवाजे, पुराणी खिडकीया
पुराने झरोके, पुराणी हस्तीया
नये उजाले तखने , 
ए दिल कही और चल !!

धुवेमे खोई येह राहे
उमदी भरी भीड खोले ही बाहे
मुझे मेरी राह दिखाने 
ए दिल कही और चल !!

खो गया हु अपनो में हि कही 
परछाइयोमे धुंधली परछाइ मेरी 
अपनी परछाइ कि तलाश मे
ए दिल कही और चल !!

पुराने किस्से, पुरानी बाते 
नई उम्मिदे, नई चाहते
उम्मिदोकी इस दोहराहत से बहर लेकर
ए दिल कही और चल 

तू ना जाने रुका है कही
हथेलियोमे जखडी हथेलि मेरी
तोडके ये सारे बंधन यही
ए दिल कही और चल !!

खुदमे समाने कि कोशिश ये मेरी 
हवा मे मुस्कुराती बालो कि उलझन ये कही 
चंदा कि चांदणी लिये, धुंधली शाम लिये 
ए दिल कही और चल !!
ए दिल कही और चल !!

- सागर